एलोपैथी चिकित्सा के मापदंडों से अनभिज्ञ जनबहुल इलाकों में मात्र एक वर्ष का पाठ्यक्रम, डिप्लोमा इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी उत्तीर्ण किए लोग स्वतंत्र पैथोलॉजी लैब चला रहें है। इस प्रकार योग्यताधारी तकनीशियनों को पैथोलॉजिस्ट, जिनके पास एम डी, पैथोलॉजी की डिग्री है, के अधीन होकर काम करना है। डीएमएलटी अहर्ता पैथोलॉजी जांच रिपोर्ट पर अंतिम दस्तखत करने की क्षमता नहीं देती। डी एम एल टी को पैथोलॉजिस्ट के अधीन रहकर कार्य करना होता है और अपनी प्रस्तुति रोगी के मल, मूत्र नमूने जांच उपरांत पैथोलॉजिस्ट को देना होता है। पैथोलॉजिस्ट रोगी की चिकित्सा हेतु रिपोर्ट बनते हैं।प्रदेश में अनेकों दृष्टांत एैसे हैं जिनमें डी एम एल टी जांच कर रिपोर्ट हस्ताक्षर कर रोगी पक्ष को दिए है। उक्त अवलोकन राज्य के सबसे पुरातन चिकित्सा महाविद्यालय पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के प्रोफेसर तथा पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ अरविंद नेराल के हैं। डॉ नेरल आम जनमानस में इस तथ्य को व्यापक प्रचार देना चाहते है कि यदि किसी चिकित्सकीय परामर्श पर पैथोलॉजी रिपोर्ट लेनी हो तो इस बात का ध्यान रखना परमावश्यक है कि जिस लैब का चयन किया जा रहा है वह पैथोलॉजिस्ट द्वारा संचालित है कि डी एम एल टी द्वारा। पैथोलॉजिस्ट द्वारा संचालित लैब का ही चयन करना चाहिए। पैथोलॉजी जांच चिकित्सा के आधार होते है। यदि पैथोलॉजी रिपोर्ट गलत हो तो पूरी चिकित्सा गलत होकर मरीज को स्थिति को और गंभीर बना सकती है। प्रदेश शासन को भी नियमित निरीक्षण कर एैसे लैब बंद करने चाहिए जो आवश्यक योग्यताधारी के बगैर संचालित हो रहें हैं।

ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के मेडिकल लैब टेक्नीशियन प्रकोष्ठ के प्रांतीय संयोजक विकास यादव जी ने कुछ ही दिन पूर्व बताया की वर्तमान में प्रदेश में लैब टेक्नीशियन के लिए जो पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है वह मात्र एक साल का है। केंद्र शासन ने उन्नत पाठ्यक्रम की शुरुवात की है। उक्त तथ्य को स्वीकार करते हुए पैथोलॉजी विभाग अध्यक्ष ने यह राय दी कि मेडिकल लैब टेक्नीशियन का कौशल उन्नयन सफल चिकित्सा हेतु परमावश्यक हैं।