छत्तीसगढ़ प्रदेश स्वास्थ्य कर्मचारी संघ द्वारा स्वास्थ्य विभाग अंतर्गत मैदानी कर्मचारियों के लिए उठाई गयी निश्चित यात्रा भत्ता की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है l यह अपूर्णता कर्मचारी स्तर पर शंकाओं को जन्म दे रही हैl

संघ के शीर्षस्थ पदाधिकारियों ने यह जानकारी दी कि मैदानी कर्मचारियों में एम पी डब्लु, आर एच ओ तथा सुपरवाइजर आते हैं, जो टीकाकरण, परिवार नियोजन और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में छुपे मानव हित के उद्देश्यों को आम जनता तक ले जाने में अहम भूमिका निभाते हैं l

वर्त्तमान में प्रचलित नियमों के अनुसार इन कर्मचारियों को अपना टी ए बील बनाकर देना होता है, जिसकी प्रतिपूर्ति में उन्हें ‘अनुचित कमिशन’ देना होता हैl जो दौरा नहीं करते और बिल बनाकर देते हैं उनका बिल पास हो जाता है और दूसरी तरफ इमानदार कर्मचारियों के बील चार, पांच साल तक पेंडिंग हैl उक्त अनुचित कमीशन की मानों एक अघोषित परंपरा चल रही है, जिसमें ‘बजट का दस प्रतिशत’, ‘सी एम ओ –पंद्रह’, ‘बी एम ओ- पच्चीस’ हैl

निश्चित यात्रा भत्ता की मांग पूरी होने से यह अनुचित कमीशन की परंपरा एक तरफ समाप्त हो जाएगी और दूसरी तरफ मैदानी कर्मचारी निश्चिन्त होकर अपना कार्य संपादन करेंगेl शासन के लिए भी इन कर्मचारियों द्वारा की गई दौराओं को संज्ञान में लेकर इनके भत्ते को ‘देना’ या ‘नहीं देना’ जैसे निर्णय लेना भी आसान हो जायेगा l

संघ ने यह रेखांकित किया कि पटवारियों को नियमित रूप से यात्रा भत्ता दिया जा रहा है l संघ की यह मांग है की मैदानी कर्मचारियों को उनके वेतन लेवल के अनुपात में निश्चित यात्रा भत्ता दिया जाय l संचनालय स्तर से शासन स्तर तक उक्त मांग को तिन बार अग्रेषित किया जा चुका है, पर स्वीकृति की सिल-मुहर लगना अभी भी अपेक्षित है l

क्या अनुचित कमीशन की परंपरा को जीवित रखने की मंशा है ? यह पैसा अधिकारीयों तक जाता है l

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