शासकीय अस्पताल भले ही आज के दौर में आधुनिक मशीनों तथा बाहरी सौंदर्य और चकाचौंध के मापदंडों पर निजी अस्पतालों से पीछे हों, पर इन्हीं अस्पतालों के अस्तित्व में होने के कारण निजी अस्पताल मनमानी नहीं कर पा रहें हैl
आम जनता में कुछ लोग ऐसे हैं जो सरकारी अस्पतालों को गंभीरता से नहीं लेतेl उनके आचरण इन अस्पतालों में कुछ ऐसे होते हैं कि मानों किसी सड़क पर थूकते हुए चल रहें हों l सरकारी अस्पताल आज के महंगाई के दौर में भी मुफ्त में इलाज कर रहें है l कुछ लोग इन अस्पतालों में कैसे भी अपनी गाड़ी चलाकर घुसते हैं, इधर-उधर थूकते हैं और ऊँची आवाज में बात करते हैं l हर कदम पर पैसे लेने वाले निजी अस्पतालों में ऐसे लोग दुबक के बैठते हैं l ये कैसा नागरिक आचरण ?
जरा सोचें : मुफ्त में बने पर्चे पर सालभर डायबिटीज से सम्बंधित परिक्षण, चिकित्सकीय परामर्श और दवाएं देनेवाले सरकारी अस्पतालों में थूकना, और मात्र एक बार का ब्लड शुगर टेस्ट के लिए १०० से २०० रूपए लेने वाले निजी अस्पतालों में ‘जी’ कहनाl क्या ये सभ्य, सुशिक्षित लोगों के आचरण है?
यदि आम जनता शासकीय अस्पतालों को अपनी संपत्ति समझकर वहां मर्यादित आचरण करें तो वहां काम करनेवाले चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मचारी और उत्साहित होकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाएंगे, जिसका सुफल जनता को ही मिलेगाl
आज के दौर के जवान लोग यदि साज-श्रृंगार, आधुनिक वेशभूषा, और अन्य प्राथमिकताओं में इस बात को भी शामिल करते हैं की “बीमार नहीं पड़ेंगे” तो एक तरफ वो शासन के लिए ‘रोगी-भार’ को कम करेंगे और दूसरी तरफ निजी अस्पतालों के सर्वग्रासी पकड़ से सदा दूर रहेंगेl
स्वस्थ रहना और शासकीय अस्पताल, भवनों के सौंदर्य और गरिमायुक्त आभा को सदैव सुनिश्चित रखना एक मौन देश सेवा है, जिसके दूरगामी परिणाम में अपने आनेवाली पीढ़ियों के लिए शांति, मैत्री और प्रेम की प्रतिक छोड़ जाना होता हैl अस्पतालों में आदर्श आचरण कैसा होता है, इसकी जानकारी होनी चाहिए और राज्य के हर नागरिक को इससे ज्ञात कराना चाहियेl
पान, गुटखा खाकर थूकने को शान समझनेवाले को इस बात की जानकारी होने चाहिए की प्रत्येक वर्ष शासन को उनके दाग मिटने के लिए कड़ोरों रूपए खर्च करने पड़ते है l